जमुना प्रसाद राही
ग़ज़ल 15
अशआर 14
जो सुनते हैं कि तिरे शहर में दसहरा है
हम अपने घर में दिवाली सजाने लगते हैं
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कच्ची दीवारें सदा-नोशी में कितनी ताक़ थीं
पत्थरों में चीख़ कर देखा तो अंदाज़ा हुआ
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कश्तियाँ डूब रही हैं कोई साहिल लाओ
अपनी आँखें मिरी आँखों के मुक़ाबिल लाओ
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गाँव से गुज़रेगा और मिट्टी के घर ले जाएगा
एक दिन दरिया सभी दीवार ओ दर ले जाएगा
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सदियों का इंतिशार फ़सीलों में क़ैद था
दस्तक ये किस ने दी कि इमारत बिखर गई
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