इशरत धौलपुर
ग़ज़ल 1
अशआर 2
गुमनाम एक लाश कफ़न को तरस गई
काग़ज़ तमाम शहर के अख़बार बन गए
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कितना पुर-अम्न है माहौल फ़सादात के बा'द
शाम के वक़्त निकलता नहीं बाहर कोई
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