इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल 81
नज़्म 65
अशआर 13
लड़कियाँ माओं जैसे मुक़द्दर क्यूँ रखती हैं
तन सहरा और आँख समुंदर क्यूँ रखती हैं
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शाम को तेरा हँस कर मिलना
दिन भर की उजरत होती है
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भूक से या वबा से मरना है
फ़ैसला आदमी को करना है
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अकेले घर में भरी दोपहर का सन्नाटा
वही सुकून वही उम्र भर का सन्नाटा
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तेरा नाम लिखती हैं उँगलियाँ ख़लाओं में
ये भी इक दुआ होगी वस्ल की दुआओं में
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वीडियो 9
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