इक़बाल माहिर
ग़ज़ल 13
अशआर 1
आसमानों में लचकती हुई ये क़ौस-ए-क़ुज़ह
भेस बदले हुए रावन की कमाँ है यारो
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere