इनाम नदीम
ग़ज़ल 12
अशआर 16
ये मोहब्बत भी एक नेकी है
इस को दरिया में डाल आते हैं
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पुकारते थे मुझे आसमाँ मगर मैं ने
क़याम करने को ये ख़ाक-दाँ पसंद किया
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एक लम्हा लौट कर आया नहीं
ये बरस भी राएगाँ रुख़्सत हुआ
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दरिया को किनारे से क्या देखते रहते हो
अंदर से कभी देखो कैसा नज़र आता है
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नींद से जागा हूँ तो बैठा सोचता हूँ
ख़्वाब में उस को पाया था या साया था
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