इम्तियाज़ ख़ान
ग़ज़ल 16
अशआर 4
हम को अक्सर ये ख़याल आता है उस को देख कर
ये सितारा कैसे ग़लती से ज़मीं पर रह गया
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हम को अक्सर ये ख़याल आता है उस को देख कर
ये सितारा कैसे ग़लती से ज़मीं पर रह गया
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एहसान ज़िंदगी पे किए जा रहे हैं हम
मन तो नहीं है फिर भी जिए जा रहे हैं हम
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एहसान ज़िंदगी पे किए जा रहे हैं हम
मन तो नहीं है फिर भी जिए जा रहे हैं हम
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राह-ए-दिल को रौंद कर आगे निकल जाएँगे लोग
आँख में उठता ग़ुबार-ए-क़ाफ़िला रह जाएगा
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