होश नोमानी रामपुरी
ग़ज़ल 22
अशआर 2
जिस्म तो ख़ाक है और ख़ाक में मिल जाएगा
मैं बहर-हाल किताबों में मिलूँगा तुम को
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वो तो बता रहा था कई रोज़ का सफ़र
ज़ंजीर खींच कर जो मुसाफ़िर उतर गया
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