हीरानंद सोज़
ग़ज़ल 6
अशआर 3
अपने घरों के कर दिए आँगन लहू लहू
हर शख़्स मेरे शहर का क़ाबील हो गया
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अजीब हाल था अहद-ए-शबाब में दिल का
मुझे गुनाह भी कार-ए-सवाब लगता था
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जनाज़े वालो न चुपके क़दम बढ़ाए चलो
उसी का कूचे है टुक करते हाए हाए चलो
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