हिज्र नाज़िम अली ख़ान
ग़ज़ल 6
अशआर 12
कुछ ख़बर है तुझे ओ चैन से सोने वाले
रात भर कौन तिरी याद में बेदार रहा
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उस बज़्म में जो कुछ नज़र आया नज़र आया
अब कौन बताए कि हमें क्या नज़र आया
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कभी ये फ़िक्र कि वो याद क्यूँ करेंगे हमें
कभी ख़याल कि ख़त का जवाब आएगा
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ऐ हिज्र वक़्त टल नहीं सकता है मौत का
लेकिन ये देखना है कि मिट्टी कहाँ की है
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हाँ हाँ तुम्हारे हुस्न की कोई ख़ता नहीं
मैं हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ से दीवाना हो गया
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