हाशिम रज़ा जलालपुरी
ग़ज़ल 29
अशआर 3
सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के
ज़िंदगी जीते हैं कुछ लोग ख़सारा कर के
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
हम से आबाद है ये शेर-ओ-सुख़न की महफ़िल
हम तो मर जाएँगे लफ़्ज़ों से किनारा कर के
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
हम बे-नियाज़ बैठे हुए उन की बज़्म में
औरों की बंदगी का असर देखते रहे
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए