ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म 5
अशआर 1
छेड़ती हैं कभी लब को कभी रुख़्सारों को
तुम ने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रक्खा है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere