गौहर होशियारपुरी
ग़ज़ल 20
अशआर 7
नाव न डूबी दरिया में
नाव में दरिया डूब गया
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फूलों में वही तो फूल ठहरा
जो तेरे सलाम को खिला हो
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लहजा तो बदल चुभती हुई बात से पहले
तीर ऐसा तो कुछ हो जिसे नख़चीर भी चाहे
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लोग किनारे आन लगे
और किनारा डूब गया
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उजले मैले पेश हुए
जैसे हम थे पेश हुए
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