फ़रीद जावेद
ग़ज़ल 20
अशआर 4
गुफ़्तुगू किसी से हो तेरा ध्यान रहता है
टूट टूट जाता है सिलसिला तकल्लुम का
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हमें भी अपनी तबाही पे रंज होता है
हमारे हाल-ए-परेशाँ पे मुस्कुराओ नहीं
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कितनी रंगीनियों में तेरी याद
किस क़दर सादगी से आती है
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तरब का रंग मोहब्बत की लौ नहीं देता
तरब के रंग में कुछ दर्द भी समो लें आज
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