फ़ैज़ अनवर
ग़ज़ल 1
अशआर 2
जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे
जान बाक़ी है मगर साँस रुकी हो जैसे
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कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे
तू ने आँखों से कोई बात कही हो जैसे
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