दिलावर अली आज़र
ग़ज़ल 28
अशआर 13
उसे किसी से मोहब्बत न थी मगर उस ने
गुलाब तोड़ के दुनिया को शक में डाल दिया
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उस से मिलना तो उसे ईद-मुबारक कहना
ये भी कहना कि मिरी ईद मुबारक कर दे
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उस से कुछ ख़ास तअल्लुक़ भी नहीं है अपना
मैं परेशान हुआ जिस की परेशानी पर
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अब मुझ को एहतिमाम से कीजे सुपुर्द-ए-ख़ाक
उक्ता चुका हूँ जिस्म का मलबा उठा के मैं
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मैं जब मैदान ख़ाली कर के आया
मिरा दुश्मन अकेला रह गया था
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