भगवान दास एजाज़
दोहा 56
आज मुझी पर खुल गया मेरे दिल का राज़
आई है हँसते समय रोने की आवाज़
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होगी इक दिन घर मिरे फूलों की बरसात
मैं पगला इस आस में हँसता हूँ दिन रात
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आसमान पर छा गई घटा घोर-घनगोर
जाएँ तो जाएँ कहाँ वीराने में शोर
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हम जग में कैसे रहे ज़रा दीजिए ध्यान
रात गुज़ारी जिस तरह दुश्मन-घर मेहमान
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भीतर क्या क्या हो रहा ऐ दिल कुछ तो बोल
एक आँख रोए बहुत एक हँसे जी खोल
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