अज़ीज़ एजाज़
ग़ज़ल 1
अशआर 3
जैसे कोई रोता है गले प्यार से लग कर
कल रात मैं रोया तिरी दीवार से लग कर
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जैसा मूड हो वैसा मंज़र होता है
मौसम तो इंसान के अंदर होता है
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हर एक के चेहरे पे है तशवीश नुमायाँ
बैठे हैं मसीहा तिरे बीमार से लग कर
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