अशोक साहिल
ग़ज़ल 2
अशआर 3
उर्दू के चंद लफ़्ज़ हैं जब से ज़बान पर
तहज़ीब मेहरबाँ है मिरे ख़ानदान पर
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दिल की बस्ती में उजाला ही उजाला होता
काश तुम ने भी किसी दर्द को पाला होता
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तेरे सिवा किसी से त'अल्लुक़ न था मुझे
लेकिन तमाम शहर ने रुस्वा किया मुझे
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