अनंत गुप्ता
ग़ज़ल 12
अशआर 2
दिखावा ही करना है तो फिर बड़ा कर
तू शाइ'र नहीं ख़ुद को आशिक़ कहा कर
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सच नहीं है अनाज की क़िल्लत
यार फ़ाक़े यहाँ ज़मीर के हैं
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