आलोक यादव
ग़ज़ल 22
नज़्म 1
अशआर 12
एक उम्र से तुझे मैं बे-उज़्र पी रहा हूँ
तू भी तो प्यास मेरी ऐ जाम पी लिया कर
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मुझ को जन्नत के नज़ारे भी नहीं जचते हैं
शहर-ए-जानाँ ही तसव्वुर में बसा है साहब
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मिरे लिए हैं मुसीबत ये आइना-ख़ाने
यहाँ ज़मीर मिरा बे-नक़ाब रहता है
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हुस्न की दिलकशी पे नाज़ न कर
आइने बद-नज़र भी होते हैं
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