अली ज़रयून
ग़ज़ल 11
अशआर 4
बात भी कीजिए देख भी लीजिए
देख भी लीजिए बात भी कीजिए
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अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं
ख़ुद अपने साथ हूँ यानी ख़ुदा के साथ हूँ मैं
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अस्र के वक़्त मेरे पास न बैठ
मुझ पे इक साँवली का साया है
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सुकूत-ए-शाम का हिस्सा तू मत बना मुझ को
मैं रंग हूँ सो किसी मौज में मिला मुझ को
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