अकबर मासूम
ग़ज़ल 13
अशआर 11
रह जाएगी ये सारी कहानी यहीं धरी
इक रोज़ जब मैं अपने फ़साने में जाऊँगा
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अब तेरा खेल खेल रहा हूँ मैं अपने साथ
ख़ुद को पुकारता हूँ और आता नहीं हूँ मैं
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अब तुझे मेरा नाम याद नहीं
जब कि तेरा पता रहा हूँ मैं
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है मुसीबत में गिरफ़्तार मुसीबत मेरी
जो भी मुश्किल है वो मेरे लिए आसानी है
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वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं
मैं उस की धूप से साया बदल के आया हूँ
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वीडियो 4
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