अहमद ज़फ़र
ग़ज़ल 23
नज़्म 9
अशआर 6
अंग अंग से रंग रंग के फूल बरसते देखे कौन
रंग रंग से शोले बरसे कैसे बरसे सोचे कौन
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क्यूँ तीरगी से इस क़दर मानूस हूँ 'ज़फ़र'
इक शम-ए-राह-गुज़र कि सहर तक जली भी है
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कौन डूबेगा किसे पार उतरना है 'ज़फ़र'
फ़ैसला वक़्त के दरिया में उतर कर होगा
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जो रेज़ा रेज़ा नहीं दिल उसे नहीं कहते
कहें न आईना उस को जो पारा-पारा नहीं
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मैं मकीं हूँ न मकाँ शहर-ए-मोहब्बत का 'ज़फ़र'
दिल मुसाफ़िर न किसी ग़ैर के घर जाएगा
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