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पाकिस्तान के प्रमुखतम समसामयिक शायरों में शामिल

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अहमद जावेद के शेर

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दिल-ए-बेताब के हमराह सफ़र में रहना

हम ने देखा ही नहीं चैन से घर में रहना

दुनिया मिरे पड़ोस में आबाद है मगर

मेरी दुआ-सलाम नहीं उस ज़लील से

ये एक लम्हे की दूरी बहुत है मेरे लिए

तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार करने को

ये क्या चीज़ तामीर करने चले हो

बिना-ए-मोहब्बत को वीरान कर के

ख़बर नहीं है मिरे बादशाह को शायद

हज़ार मर्तबा आज़ाद ये ग़ुलाम हुआ

अजब सफ़र था अजब-तर मुसाफ़िरत मेरी

ज़मीं शुरू हुई और मैं तमाम हुआ

सुख की ख़ातिर दुख मत बेच

जाल के पीछे जाल डाल

हमेशा दिल हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खा

ख़ुद अपना नाम भी दुश्मन के नाम पर रक्खा

घर और बयाबाँ में कोई फ़र्क़ नहीं है

लाज़िम है मगर इश्क़ के आदाब में रहना

एक आँसू से कमी जाएगी

ग़ालिबन दरियाओं के इक़बाल में

दिल से बाहर आज तक हम ने क़दम रक्खा नहीं

देखने में ज़ाहिरा लगते हैं सैलानी से हम

उस की आँखों के वस्फ़ क्या लिक्खूँ

जैसे ख़्वाबों का बे-कराँ ठहराओ

तिरी दुनिया में दिल हम भी इक गोशे में रहते हैं

हमें भी कुछ उम्मीदें हैं तिरी आलम-पनाही से

मशग़ूल हैं सफ़ाई-ओ-तौसी-ए-दिल में हम

तंगी इस मकान में हो मेहमान को

यही दिल जो इक बूँद है बहर-ए-ग़म की

डुबो देगा सब शहर तूफ़ान कर के

गहवारा-ए-सफ़र में खुली है हमारी आँख

ता'मीर अपने घर की हुई संग-ए-मील से

आमादा रखें चश्म-ओ-दिल सामान-ए-हैरानी करें

क्या जानिए किस वक़्त वो नज़ारा फ़रमानी करें

तुलू-ए-साअत-ए-शब-ख़ूँ है और मेरा दिल

किसी सितारा-ए-बद की निगाह में आया

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