आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल 42
अशआर 25
शाख़-ए-गुल झूम के गुलज़ार में सीधी जो हुई
फिर गया आँख में नक़्शा तिरी अंगड़ाई का
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इश्क़ हो जाएगा मेरी दास्तान-ए-इश्क़ से
रात भर जागा करोगे इस कहानी के लिए
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लिक्खा है जो तक़दीर में होगा वही ऐ दिल
शर्मिंदा न करना मुझे तू दस्त-ए-दुआ का
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बे-वफ़ा तुम बा-वफ़ा मैं देखिए होता है क्या
ग़ैज़ में आने को तुम हो मुझ को प्यार आने को है
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- ग़ज़ल देखिए
कभी जो यार को देखा तो ख़्वाब में देखा
मिरी मुराद भी आई तो मुस्तआर आई
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