अदील ज़ैदी
ग़ज़ल 21
नज़्म 10
अशआर 26
दे हौसले की दाद के हम तेरे ग़म में आज
बैठे हैं महफ़िलों को सजाए तिरे बग़ैर
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इसे शाइ'री न जानो ये है मेरी आप-बीती
मैं ने लिख दिया है दिल का सभी हाल चलते चलते
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मैं इस से क़ीमती शय कोई खो नहीं सकता
'अदील' माँ की जगह कोई हो नहीं सकता
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रस्म-ओ-रिवाज छोड़ के सब आ गए यहाँ
रक्खी हुई हैं ताक़ में अब ग़ैरतें तमाम
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हर तरफ़ अपने ही अपने हाए तन्हाई न पूछ
किस क़दर खलती है अक्सर हम को बीनाई न पूछ
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