अब्दुल वहाब यकरू
ग़ज़ल 17
अशआर 12
जभी तू पान खा कर मुस्कुराया
तभी दिल खिल गया गुल की कली का
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प्यासा मत जला साक़ी मुझे गर्मी सीं हिज्राँ की
शिताबी ला शराब-ए-ख़ाम हम ने दिल को भूना है
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जने देखा सो ही बौरा हुआ है
तिरे तिल हैं मगर काला धतूरा
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ख़म-ए-मेहराब-ए-अबरुवाँ के बीच
काम आँखों का है इमामत का
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जो तूँ मुर्ग़ा नहीं है ऐ ज़ाहिद
क्यूँ सहर गाह दे है उठ के बाँग
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