अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
ग़ज़ल 39
अशआर 10
नहीं मिलती उन्हें मंज़िल जिन्हें ख़ौफ़-ए-हवादिस है
जो मौजों से नहीं डरते नदी को पार करते हैं
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अब चराग़ों में ज़िंदगी कम है
दिल जलाओ कि रौशनी कम है
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कैफ़-ओ-मस्ती सुरूर क्या मा'नी
ज़िंदगी में भी अब ख़ुशी कम है
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बेवफ़ा कहिए बा-वफ़ा कहिए
दिल में आए जो बरमला कहिए
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ज़िंदगी छोटी है सामान बहुत
और दिल के भी हैं अरमान बहुत
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