अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
ग़ज़ल 5
अशआर 5
ज़ाहिरन मौत है क़ज़ा है इश्क़
पर हक़ीक़त में जाँ-फ़ज़ाँ है इश्क़
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ज़ाहिरन मौत है क़ज़ा है इश्क़
पर हक़ीक़त में जाँ-फ़ज़ाँ है इश्क़
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मस्जिद में गर गुज़र न हुआ दैर ही सही
बेकार बैठे क्यूँ रहें इक सैर ही सही
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मस्जिद में गर गुज़र न हुआ दैर ही सही
बेकार बैठे क्यूँ रहें इक सैर ही सही
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पीरी में शौक़ हौसला-फ़रसा नहीं रहा
वो दिल नहीं रहा वो ज़माना नहीं रहा
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