आबिद अदीब
ग़ज़ल 12
नज़्म 8
अशआर 7
जहाँ पहुँच के क़दम डगमगाए हैं सब के
उसी मक़ाम से अब अपना रास्ता होगा
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सफ़र में ऐसे कई मरहले भी आते हैं
हर एक मोड़ पे कुछ लोग छूट जाते हैं
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अमीर-ए-कारवाँ है तंग हम से
हमारा रास्ता सब से अलग है
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जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहे
वो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं
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ज़माना मुझ से जुदा हो गया ज़माना हुआ
रहा है अब तो बिछड़ने को मुझ से तू बाक़ी
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