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नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं

चकबस्त बृज नारायण

नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं

चकबस्त बृज नारायण

रोचक तथ्य

1912

नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं

वतन की आबरू अहल-ए-वतन बरबाद करते हैं

हवा में उड़ के सैर-ए-आलम-ए-ईजाद करते हैं

फ़रिश्ते दंग हैं वो काम आदम-ज़ाद करते हैं

नया मस्लक नया रंग-ए-सुख़न ईजाद करते हैं

उरूस-ए-शेर को हम क़ैद से आज़ाद करते हैं

मता-ए-पास-ए-ग़ैरत‍‍‍ बुल-हवस बरबाद करते हैं

लब-ए-ख़ामोश को शर्मिंदा-ए-फ़र्याद करते हैं

हवा-ए-ताज़ा पा कर बोस्ताँ को याद करते हैं

असीरान-ए-क़फ़स वक़्त-ए-सहर फ़रियाद करते हैं

ज़रा कुंज-ए-मरक़द याद रखना उस हमिय्यत को

कि घर वीरान कर के हम तुझे आबाद करते हैं

हर इक ख़िश्त-ए-कुहन अफ़्साना-ए-देरीना कहती है

ज़बान-ए-हाल से टूटे खंडर फ़रियाद करते हैं

बला-ए-जाँ हैं ये तस्बीह और ज़ुन्नार के फंदे

दिल-ए-हक़-बीं को हम इस क़ैद से आज़ाद करते हैं

अज़ाँ देते हैं बुत-ख़ाने में जा कर शान-ए-मोमिन से

हरम के नारा-ए-नाक़ूस हम ईजाद करते हैं

निकल कर अपने क़ालिब से नया क़ालिब बसाएगी

असीरी के लिए हम रूह को आज़ाद करते हैं

मोहब्बत के चमन में मजमा-ए-अहबाब रहता है

नई जन्नत इसी दुनिया में हम आबाद करते हैं

नहीं घटती मिरी आँखों में तारीकी शब-ए-ग़म की

ये तारे रौशनी अपनी अबस बरबाद करते हैं

थके-माँदे मुसाफ़िर ज़ुल्मत-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ में

बहार-ए-जल्वा-ए-सुब्ह-ए-वतन को याद करते हैं

दिल-ए-नाशाद रोता है ज़बाँ उफ़ कर नहीं सकती

कोई सुनता नहीं यूँ बे-नवा फ़रियाद करते हैं

जनाब-ए-शैख़ को ये मश्क़ है याद-ए-इलाही की

ख़बर होती नहीं दिल को ज़बाँ से याद करते हैं

नज़र आती है दुनिया इक इबादत-गाह-ए-नूरानी

सहर का वक़्त है बंदे ख़ुदा को याद करते हैं

सबक़ उम्र-ए-रवाँ का दिल-नशीं होने नहीं पाता

हमेशा भूलते जाते हैं जो कुछ याद करते हैं

ज़माने का मोअल्लिम इम्तिहाँ उन का नहीं करता

जो आँखें खोल कर ये दर्स-ए-हस्ती याद करते हैं

अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का

वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं

जानी क़द्र तेरी उम्र-ए-रफ़्ता हम ने कॉलेज में

निकल आते हैं आँसू अब तुझे जब याद करते हैं

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