मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
बारिशें होती रहीं तो ये नदी बढ़ जाएगी
इश्क़ की राहों में हाएल हो रही है आगही
अब जुनूँ बढ़ जाएगा दीवानगी बढ़ जाएगी
हर घड़ी तेरा तसव्वुर हर नफ़स तेरा ख़याल
इस तरह तो और भी तेरी कमी बढ़ जाएगी
हो सके तो इस हिसार-ए-ज़ात से बाहर निकल
हब्स में रहने से वहशत और भी बढ़ जाएगी
उस ने सूरज के मुक़ाबिल रख दिए अपने चराग़
वो ये समझा इस तरह कुछ रौशनी बढ़ जाएगी
इश्क़ के तन्हा सफ़र में कोई साया ढूँड ले
धूप में चलता रहा तो तिश्नगी बढ़ जाएगी
तू हमेशा माँगता रहता है क्यूँ ग़म से नजात
ग़म नहीं होंगे तो क्या तेरी ख़ुशी बढ़ जाएगी
हो सके तो हम पे ज़ाहिर कर दे अपने दिल का हाल
सोचते रहने से तो संजीदगी बढ़ जाएगी
अपनी तन्हाई में किस से गुफ़्तुगू करता है तू
इन सदाओं से तो शब की ख़ामुशी बढ़ जाएगी
क्या पता था रात भर यूँ जागना पड़ जाएगा
इक दिया बुझते ही इतनी तीरगी बढ़ जाएगी
- पुस्तक : Bechehragi (पृष्ठ 38)
- रचनाकार : bharat bhushan pant
- प्रकाशन : Suman prakashan Alambagh,Lucknow (2010)
- संस्करण : 2010
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