वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें
वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें
वो इक शख़्स के याद आने की रातें
शब-ए-मह की वो ठंडी आँचें वो शबनम
तिरे हुस्न के रस्मसाने की रातें
जवानी की दोशीज़गी का तबस्सुम
गुल-ए-ज़ार के वो खिलाने की रातें
फुवारें सी नग़्मों की पड़ती हों जैसे
कुछ उस लब के सुनने-सुनाने की रातें
मुझे याद है तेरी हर सुब्ह-ए-रुख़्सत
मुझे याद हैं तेरे आने की रातें
पुर-असरार सी मेरी अर्ज़-ए-तमन्ना
वो कुछ ज़ेर-ए-लब मुस्कुराने की रातें
सर-ए-शाम से रतजगा के वो सामाँ
वो पिछले पहर नींद आने की रातें
सर-ए-शाम से ता-सहर क़ुर्ब-ए-जानाँ
न जाने वो थीं किस ज़माने की रातें
सर-ए-मय-कदा तिश्नगी की वो क़स्में
वो साक़ी से बातें बनाने की रातें
हम-आग़ोशियाँ शाहिद-ए-मेहरबाँ की
ज़माने के ग़म भूल जाने की रातें
'फ़िराक़' अपनी क़िस्मत में शायद नहीं थे
ठिकाने के दिन या ठिकाने की रातें
- पुस्तक : Gul-e-Naghma (पृष्ठ 57)
- रचनाकार : Firaq Gorakhpuri
- प्रकाशन : Maktaba Farogh-e-urdu Matia Mahal Jama Masjid Delhi (2006)
- संस्करण : 2006
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