मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा
मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा
या ठहर मुझ में या ख़ुद में मुझे ठहरा सहरा
रूह में लहर बनाते हैं तिरी लहरों से
और कुछ देर मिरे सामने लहरा सहरा
आँख झपकी थी बस इक लम्हे को और इस के ब'अद
मैं ने ढूँडा है तुझे ज़िंदगी सहरा सहरा
अपनी हस्ती को बिखरने से बचा लेना तुम
मुझ पे मत जाना मिरी जान मैं ठहरा सहरा
मेरे लहजे का समुंदर ही नहीं सूखा है
लुट गया तेरी हँसी का भी सुनहरा सहरा
- पुस्तक : Quarterly TASTEER Lahore (पृष्ठ 154)
- रचनाकार : Naseer Ahmed Nasir
- प्रकाशन : Room No.-1,1st Floor, Awan Plaza, Shadman Market, Lahore (Issue No. 5,6 April To Sep. 1998)
- संस्करण : Issue No. 5,6 April To Sep. 1998
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