Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

हल्क़ा हल्क़ा घर बना लख़्त-ए-दिल-ए-बेताब का

मुनीर शिकोहाबादी

हल्क़ा हल्क़ा घर बना लख़्त-ए-दिल-ए-बेताब का

मुनीर शिकोहाबादी

हल्क़ा हल्क़ा घर बना लख़्त-ए-दिल-ए-बेताब का

ज़ुल्फ़-ए-जानाँ में है आलम सुब्हा-ए-सीमाब का

सोने में नज़्ज़ारा कर लूँ रू-ए-आलम-ताब का

ख़ौफ़ क्या दुज़्द-ए-निगह को है शब-ए-महताब का

खेल भी बेताब था तिफ़्ली में उस बेताब का

पर उड़ाता था हवा पर माही-ए-बे-आब का

रुक नहीं सकता है दरिया दीदा-ए-पुर-आब का

पाट है रूमाल मेरा दामन-ए-सैलाब का

ख़्वाब में यारान-ए-रफ़्ता से मुलाक़ातें हुईं

हम ने समझा ख़िज़्र ग़फ़्लत को रह-ए-अहबाब का

कहते हैं सब देख कर बेताब मेरा उज़्व उज़्व

आदमी अब तक नहीं देखा कहीं सीमाब का

नींद की सूरत नहीं देखा ब-जुज़ दाग़-ए-जिगर

पर्दा मेरी आँख में शायद कि है कम-ख़्वाब का

लग गई आग आतिश-ए-रुख़ से नक़ाब-ए-यार में

देख लो जलता है कोना चादर-ए-महताब का

मजलिस-ए-बे-शम्अ' वो हैं शम-ए-बे-मजलिस हूँ मैं

ग़म मिरा अहबाब को है मुझ को ग़म अहबाब का

हिज्र-ए-जानाँ के अलम में हम फ़रिश्ते बन गए

ध्यान मुद्दत से छुटा आब-ओ-तआ'म-ओ-ख़्वाब का

अहल-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा से सर-बुलन्दों की है ज़ेब

ख़ुशनुमा ज़ेर-ए-मनार क़ुर्ब है मेहराब का

झुक के हम ने बोसा-ए-अबरू की जब माँगी दुआ

हल्का-ए-आग़ोश पर आलम हुआ मेहराब का

इस क़दर फ़रियाद महशर-ख़ेज़ बुलबुल कर

देखना तख़्ता उल्टे गुलशन-ए-शादाब का

मोहर-ए-दस्त-आवेज़-ए-ग़म है हर बशर का दाग़-ए-ग़म

दिल है महज़र सोहबत-ए-गुम-कर्दा-ए-अहबाब का

बे-तकल्लुफ़ गया वो मह दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न

रह गया पास-ए-अदब से क़ाफ़िया आदाब का

परवरिश तक़दीर करती है मुझे बहर-ए-क़ज़ा

ज़ब्ह को पर्वर्दा करना काम है क़स्साब का

नश्शा-ए-जुर्रत ज़ियादा हो गया मय-कशो

साग़र-ए-मय बन गया कासा सर-ए-सोहराब का

मू-ए-आतिश-दीद साँ बल खाए वो मू-ए-कमर

मैं जो लिक्खूँ गर्म मज़मूँ उस तिलाई डाब का

हो गया हूँ मैं नक़ाब-ए-रू-ए-रौशन पर फ़क़ीर

चाहिए तह-बंद मुझ को चादर-ए-महताब का

ख़ाल-ओ-ख़त से ऐब उस के रू-ए-अक़्दस को नहीं

हुस्न है मुसहफ़ में होना नुक़्ता-ए-ए'राब का

दोस्त दुश्मन से ज़ियादा तेज़ रखते हैं छुरी

बरहमन भी पेशा अब करने लगे क़स्साब का

होंट पर अंगुश्त-ए-रंगीं रख के वो कहने लगे

शाख़-ए-मर्जां ने समर पैदा किया उन्नाब का

लाग़री के साथ बेताबी यही बहर-ए-हुस्न

ख़ार है ये जिस्म-ए-लाग़र माही-ए-बे-आब का

तेरी फ़ुर्क़त में जो आए भूल कर आँखों में नींद

मर्दुमान-ए-चश्म ने फिर मुँह देखा ख़्वाब का

मेरे मुर्ग़-ए-दिल की बेताबी उड़ाई किस तरह

हौसला ऐसा नहीं है ताइर-ए-सीमाब का

ख़िदमत-ए-अक़्दस में चल कर ये ग़ज़ल पढ़ 'मुनीर'

शोहरा सब अहल-ए-सुख़न में है तिरे नव्वाब का

स्रोत :
  • Muntakhabul-Alam

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

You have exhausted your 5 free content pages. Please Log In or Register to become a Rekhta Family member to access the full website.

बोलिए