शमशेर ख़ान
ग़ज़ल 7
अशआर 9
मोहब्बत का तक़ाज़ा है ज़रा दूरी रखी जाए
बहुत नज़दीकियाँ अक्सर बड़ी तकलीफ़ देती हैं
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मोहब्बत का तक़ाज़ा है ज़रा दूरी रखी जाए
बहुत नज़दीकियाँ अक्सर बड़ी तकलीफ़ देती हैं
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ये बात सच है तुम्हें ज़ुल्म में महारत है
ये बात भी तो हक़ीक़त है मैं नहीं डरता
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ये बात सच है तुम्हें ज़ुल्म में महारत है
ये बात भी तो हक़ीक़त है मैं नहीं डरता
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शायद तुम्हारी दीद मयस्सर न हो कभी
आओ कि तुम को देख लें फ़ुर्सत से आज हम
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