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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ज़ेब ग़ौरी

1928 - 1985 | कानपुर, भारत

भारत में अग्रणी आधुनिक शायरों में विख्यात।

भारत में अग्रणी आधुनिक शायरों में विख्यात।

ज़ेब ग़ौरी

ग़ज़ल 102

अशआर 64

बड़े अज़ाब में हूँ मुझ को जान भी है अज़ीज़

सितम को देख के चुप भी रहा नहीं जाता

ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला

मैं भी धोका खा कर कुछ चालाक हुआ

दिल है कि तिरी याद से ख़ाली नहीं रहता

शायद ही कभी मैं ने तुझे याद किया हो

मिरी जगह कोई आईना रख लिया होता

जाने तेरे तमाशे में मेरा काम है क्या

जितना देखो उसे थकती नहीं आँखें वर्ना

ख़त्म हो जाता है हर हुस्न कहानी की तरह

पुस्तकें 5

 

ऑडियो 28

अक्स-ए-फ़लक पर आईना है रौशन आब ज़ख़ीरों का

कब तलक ये शाला-ए-बे-रंग मंज़र देखिए

कोई भी दर न मिला नारसी के मरक़द में

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