- पुस्तक सूची 188640
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
गतिविधियाँ59
बाल-साहित्य2075
नाटक / ड्रामा1028 एजुकेशन / शिक्षण377 लेख एवं परिचय1531 कि़स्सा / दास्तान1738 स्वास्थ्य108 इतिहास3579हास्य-व्यंग748 पत्रकारिता216 भाषा एवं साहित्य1978 पत्र817
जीवन शैली26 औषधि1033 आंदोलन300 नॉवेल / उपन्यास5029 राजनीतिक372 धर्म-शास्त्र4900 शोध एवं समीक्षा7352अफ़साना3057 स्केच / ख़ाका294 सामाजिक मुद्दे118 सूफ़ीवाद / रहस्यवाद2281पाठ्य पुस्तक568 अनुवाद4579महिलाओं की रचनाएँ6357-
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी14
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर69
- दीवान1498
- दोहा53
- महा-काव्य106
- व्याख्या211
- गीत66
- ग़ज़ल1330
- हाइकु12
- हम्द54
- हास्य-व्यंग37
- संकलन1659
- कह-मुकरनी7
- कुल्लियात717
- माहिया21
- काव्य संग्रह5351
- मर्सिया400
- मसनवी886
- मुसद्दस61
- नात602
- नज़्म1318
- अन्य82
- पहेली16
- क़सीदा201
- क़व्वाली18
- क़ित'अ74
- रुबाई306
- मुख़म्मस16
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम35
- सेहरा10
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा20
- तारीख-गोई30
- अनुवाद74
- वासोख़्त28
सय्यद मोहम्मद अशरफ़ की कहानियाँ
डार से बिछड़े
शुरू जनवरी के आसमान में टके सितारों की जगमगाहट कोहरे की मोटी तह में कहीं-कहीं झलक रही थी। जीप की हेड लाइट्स की दो मोटी-मोटी मुतवाज़ी लकीरें आगे बढ़ रही थीं। सड़क बिल्कुल सुनसान थी। चारों तरफ़ सन्नाटा था। सन्नाटे के अलावा और कोई नहीं था, या फिर जीप के
आदमी
खिड़की के नीचे उन्हें गुज़रता हुआ देखता रहा। फिर यकायक खिड़की ज़ोर से बंद की। मुड़कर पंखे का बटन ऑन किया। फिर पंखे का बटन ऑफ़ किया। मेज़ के पास कुर्सी पे टिक कर धीमे से बोला, “आज तवक्कुल से भी ज़ियादा हैं। रोज़ बढ़ते ही जा रहे हैं।” सरफ़राज़ ने हथेलियों पर
बाद-ए-सबा का इंतिज़ार
डाक्टर आबादी में दाख़िल हुआ। रास्ते के दोनों जानिब ऊंचे कुशादा चबूतरों का सिलसिला इस इमारत तक चला गया था जो ककय्या ईंट की थी जिस पर चूने से क़लई की गई थी। चबूतरों पर अन्वाअ’-ओ-एग्ज़ाम के सामान एक ऐसी तर्तीब से रखे थे कि देखने वालों को मा’लूम किए बग़ैर
क़ुर्बानी का जानवर
ज़फ़र भौंचक्का बैठा था। आयशा ने सिवय्यों का प्याला हाथ में देते हुए पूछा, ‘‘फिर क्या कहा मैडम ने?’’ ‘‘कहा कि लड़का 14-13 साल का हो। किसी अच्छे घर का हो, घरेलू काम-काज का थोड़ा-बहुत तजुर्बा हो। आँख न मिलाता हो। साफ़-सुथरा रहता हो, तनख़्वाह ज़ियादा न
आख़री मोड़ पर
स्वार्थ, हित, सामाजिक सुन्नता रिश्तों की मंदी इस कहानी का विषय है। एक बे-औलाद बूढ़े की जायदाद की वसीयत का बै'नामा कराने के लिए उसके तीन भतीजे और भतीजी ट्रेन से सफ़र करते हैं। चचा की दिली ख़्वाहिश है कि जब उनका देहांत हो तो उनको सम्मान पूर्वक उनके पूर्वजों के साथ दफ़्न कर दिया जाये। उसी प्रसंग में कई मुसाफ़िर जानवरों और परिंदों की दर्द-मंदी और दुख-दर्द में उनके आपसी मेल का ज़िक्र करते हैं लेकिन उन नौजवानों को इस तरह की कोई घटना याद नहीं आती। ट्रेन से उतर कर जब वो बस में सवार होने वाले होते हैं तो एक ट्रक एक शख़्स को रौंदता हुआ गुज़र जाता है। उस दुर्घटना का भी नौजवान ज़र्रा बराबर नोटिस नहीं लेते लेकिन बूढ़ा ब्रीफ़केस और कम्बल फ़र्श पर डाल कर बुरी तरह रोने लगता है।
तूफ़ान
ये कहानी दम तोड़ती इंसानियत का नौहा है। तूफ़ान आने के बाद जहाँ एक तरफ़ सरकारी मदद की बंदरबाँट शुरू हो जाती है वहीं दूसरी तरफ़ ग़ैर-सरकारी संस्थाँए भी लाशों और अनाथ बच्चों का सहारा लेकर अपनी अपनी दुकान चमकाती हैं। आराधना एक सादा और दर्द-मंद दिल रखने वाली औरत है। वो एक ग़ैर सरकारी संस्था में सम्मिलित हो कर स्वेच्छा से पच्चास बच्चों की ज़िम्मेदारी अपने सर लेती है। वो अपनी प्रतिभा और मेहनत से सहारे अनाथ बच्चों के चेहरों पर मुस्कुराहट ले आती है। दान के लिए जब ग्रुप फ़ोटो खींचा जाता है तो सारे बच्चे मुस्कुराते हैं लेकिन इसी बात पर एक पदाधिकारी ग़ुस्सा हो जाता है कि ये बच्चे मुस्कुराए क्यों? अब कौन उसकी संस्था को दान देगा। वो बच्चों को डाँट कर दुबारा ग्रुप फ़ोटो बनवाता है जिसमें सारे बच्चे सहमे हुए खड़े होते हैं। फ़ोटो खिंचवाने के बाद एक बच्ची पूर्णिमा आराधना के पास आती है और मासूमियत से सवाल करती है कि आंटी अब हमें मुस्कुराना है या चुप रहना है?
अंधा ऊँट
आर्थिक स्तर पर अलगाव की वजह से पैदा होने वाली संवेदना की कहानी है। अकरम सुविधा संपन्न है और यूसुफ़ कमज़ोर। यूसुफ़ हमेशा अकरम के छोटे से छोटे काम की प्रशंसा करता है लेकिन अकरम हमेशा उसे हानि पहुँचाता है। आजीविका की तलाश दोनों को अलग कर देती है। एक लम्बे समय के बाद क्लर्क अकरम को जब उसकी राईटिंग पर टोका जाता है तो वो यूसुफ़ को याद करता है कि वो किस तरह उस की राईटिंग की तारीफ़ें किया करता था। दूसरी तरफ़ जब पहलवान यूसुफ़ को एक सैलानी अंग्रेज़ी से अज्ञानता का ताना देता और जाहिल कहता है तो वो अपने शिक्षित होने की सनद लेने गाँव लौट आता है। वो दोनों जब मिलते हैं तो अपनी व्यावहारिक जीवन की नाकामियों को साझा करते हैं। यूसुफ़ तो ख़ैर बचपन से दुख सहने का आदी था लेकिन अकरम को अब जो सदमा हुआ तो दोनों संवेदना और बेबसी की एक सतह पर आ गए। यूसुफ़ कहता है कि अंधा ऊँट मुझे पामाल कर रहा है और तुम्हें भी उसने रौंद दिया है। अंधा ऊँट इस कहानी में समय का रूपक है।
लकड़बग्घा चुप हो गया
यह कहानी इंसान के स्वार्थ की एक भयंकर दास्तान है। लकड़बग्घे को प्रतीक बना कर इंसान की कमीनगियों को व्यक्त किया गया है। बारिश में भीगता हुआ एक कमज़ोर और बेबस आदमी ट्रेन के मुसाफ़िरों से विनती करता है कि उसका भाई सख़्त बीमार है, वह उसके लिए ख़ून की बोतल ले जा रहा है, कोच का दरवाज़ा खोल कर उस पर रहम किया जाये। बड़ी उम्र के लोग तो दुविधा की स्थिति में रहते हैं लेकिन एक मासूम बच्चा हमदर्दी की भावना से प्रेरित हो कर दरवाज़ा खोल देता है। कुछ देर के बाद एक दूसरा व्यक्ति बिल्कुल उसी परेशानी की हालत में दरवाज़ा खोलने के लिए गिड़गिड़ाता है लेकिन पहले वाला व्यक्ति ख़ुद को कम्फ़र्ट ज़ोन में महसूस करता है और उसके गिड़गिड़ाने से उसके कान पर जूँ भी नहीं रेंगती। वो अपने कंधे से उसका हाथ हटा कर खिड़की का शीशा गिरा देता है। मासूम बच्चे को उस आदमी की शक्ल लकड़बग्घे जैसी मालूम होती है।
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here
-
गतिविधियाँ59
बाल-साहित्य2075
-
