- पुस्तक सूची 188777
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
गतिविधियाँ59
बाल-साहित्य2074
नाटक / ड्रामा1028 एजुकेशन / शिक्षण377 लेख एवं परिचय1533 कि़स्सा / दास्तान1740 स्वास्थ्य108 इतिहास3580हास्य-व्यंग749 पत्रकारिता217 भाषा एवं साहित्य1977 पत्र817
जीवन शैली26 औषधि1033 आंदोलन300 नॉवेल / उपन्यास5031 राजनीतिक372 धर्म-शास्त्र4902 शोध एवं समीक्षा7356अफ़साना3057 स्केच / ख़ाका294 सामाजिक मुद्दे118 सूफ़ीवाद / रहस्यवाद2281पाठ्य पुस्तक568 अनुवाद4579महिलाओं की रचनाएँ6355-
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी14
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर69
- दीवान1498
- दोहा53
- महा-काव्य106
- व्याख्या211
- गीत66
- ग़ज़ल1331
- हाइकु12
- हम्द54
- हास्य-व्यंग37
- संकलन1660
- कह-मुकरनी7
- कुल्लियात717
- माहिया21
- काव्य संग्रह5355
- मर्सिया400
- मसनवी886
- मुसद्दस62
- नात602
- नज़्म1318
- अन्य82
- पहेली16
- क़सीदा201
- क़व्वाली18
- क़ित'अ74
- रुबाई307
- मुख़म्मस16
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम35
- सेहरा10
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा20
- तारीख-गोई30
- अनुवाद74
- वासोख़्त28
चौधरी मोहम्मद अली रुदौलवी की कहानियाँ
तीसरी जिन्स
अपनी ख़ूबसूरती के लिए मशहूर एक ग़रीब माँ-बाप की बेटी की कहानी जो अच्छी ज़िंदगी की तलाश में थी। वह तहसीलदार साहब के साए में पली-बढ़ी थी। जवानी के शुरुआती दौर में उसकी शादी हुई तो कुछ अरसे शौहर के साथ रहने के बाद उसने उसे भी छोड़ दिया, फिर तहसीलदार साहब की मौत हो गई। बाद में एक मर्दों जैसी क़द-ओ-क़ामत की औरत उसके घर में रहने लगी और लोगों के दरमियान उनके बारे में तरह-तरह की बातें होने लगीं।
मीठा माशूक़
यह उस वक़्त की कहानी है जब रेल ईजाद नहीं हुई थी और लोग पैदल, ऊँट या फिर घोड़ों पर सफ़र किया करते थे। लखनऊ शहर में एक शख़्स पर मुक़दमा चल रहा था और वह शख़्स शहर से काफ़ी दूर रहता था। मुक़दमे की तारीख़ पर हाज़िर होने के लिए वह अपने क़ाफ़िले के साथ शहर के लिए रवाना हो गया। साथ में नज़राने के तौर पर मिठाइयों का एक टोकरा भी था। पूरे रास्ते उस 'मीठे माशूक़' की वजह से उन्हें कुछ ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ा कि वहआराम से सो तक नहीं सके।
रोज़ा-ख़ोर की सज़ा
एक ऐसे शेख़ साहब की कहानी है जिनका हड्डियों का कारोबार था। कुछ पुरानी किताबों की वजह उनके कई पढ़े-लिखे लोगों से मरासिन हो गए थे। उन्हीं में से एक ने शेख़ साहब को बताया कि फ़लाँ शख़्स कहता है कि उसकी कोई चीज़ आपके पास रेहन है, अगर आप उसे दे देंगे तो उसे कुछ सौ रुपये का फ़ायदा हो जाएगा। शेख़ ने अपने दोस्त की बात मानकर उस शख़्स को बुला भेजा लेकिन वह शख़्स अकेला नहीं आया। उसके साथ एक दूसरा शख़्स भी था, जिसने सबके सामने शेख़ साहब की हक़ीक़त बयान कर दी।
दूर का निशाना
यह एक ऐसे मुंशी की दास्तान है, जो अपनी हर ख़्वाहिशात को बड़े शौक़ से पूरा करने का क़ायल है। उसका कामयाब कारोबार है और चौक जो कि बाज़ार-ए-हुस्न है, तक भी उसका आना जाना लगा रहता है। ऐसे में उसकी मुलाक़ात एक वेश्या से हो जाती है। एक रोज़ वह वेश्या के यहाँ बैठा हुआ था कि एक पुलिस वाले ने उसके एक आदमी के साथ मारपीट करली। वेश्या चाहती है कि मुंशी बाहर जाए और उस पुलिस वाले को सबक़ सिखाए। मगर मुंशी जी का ठंडापन देखकर वह उनसे खफ़ा हो जाती है।
इश्क़-ए-बिल्-वास्ता
कहानी में अनमेल मोहब्बत की अक्कासी की गई है जिसमें सियासत, फ़लसफ़ा और इसके साथ ही मर्द की ज़िंदगी में औरत की मुदाख़िलत पर तब्सिरा है। एक पार्टी से वापस आने के बाद वे दोनों एक जज साहब के यहाँ तशरीफ़ ले गए, वहाँ जज साहब तो नहीं मिले, लेकिन एक नई ख़ातून ज़रूर मिली। वह नज़रियाती तौर पर कम्यूनिस्ट थी। वह उसके साथ घूमने निकल गए। यह तफ़रीह उस नज़रियात में शामिल होने जाने का इशारा था।
गुनाह का ख़ौफ़
मुख़्तारी के पेशे में मशहूर एक ऐसे शख़्स की कहानी, जिसके बारे में कहा जाता था कि अगर उन्होंने बैरिस्टर का इम्तिहान पास कर लिया होता तो हाईकोर्ट के सबसे बेहतरीन वकील होते। उन्होंने अपने पेशे से दौलत, शोहरत सब कुछ हासिल किया, सियासत में भी हाथ आज़माया। उन्होंने नया घर बनाया। एक रोज़ उसका दोस्त एक तवाएफ़ की बेटी को उनके नए मकान पर ले आया, चूँकि मज़हबी क़िस्म के आदमी थे इसलिए ये कह कर इनकार कर दिया, कि अभी इस घर में मीलाद शरीफ़ नहीं हुआ है।
join rekhta family!
-
गतिविधियाँ59
बाल-साहित्य2074
-
