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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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विजय शर्मा

1995 | मुंबई, भारत

नई पीढ़ी के अहम शायरों में शुमार, शायरी में इन्सानी जज़्बात, रिश्तों की गहराई, और ज़िंदगी की पेचीदगियों का दिलकश संगम

नई पीढ़ी के अहम शायरों में शुमार, शायरी में इन्सानी जज़्बात, रिश्तों की गहराई, और ज़िंदगी की पेचीदगियों का दिलकश संगम

विजय शर्मा

ग़ज़ल 20

नज़्म 1

 

अशआर 9

ज़िंदगी कभी इंकार का सबब भी सुन

मैं थक गया हूँ तेरी हाँ में हाँ मिलाते हुए

नई नहीं है ये तन्हाई मेरे हुजरे की

मरज़ हो कोई भी है चारागर से डर जाना

ये बहस छोड़ के कितनी हसीन है दुनिया

तू ये बता कि तेरा दिल कहीं लगा कि नहीं

इक मोहब्बत भरे सिनेमा में

मेरे मरने का सीन मेरे ख़्वाब

'अर्श' बहारों में भी आया एक नज़ारा पतझड़ का

सब्ज़ शजर के सब्ज़ तने पर इक सूखी सी डाली थी

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