सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल 36
अशआर 22
क्या कहूँ किस तरह से जीता हूँ
ग़म को खाता हूँ आँसू पीता हूँ
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बेवफ़ा कुछ नहीं तेरी तक़्सीर
मुझ को मेरी वफ़ा ही रास नहीं
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जिस घड़ी घूरते हो ग़ुस्सा से
निकले पड़ता है प्यार आँखों में
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अपने नज़दीक दर्द-ए-दिल मैं कहा
तेरे नज़दीक क़िस्सा-ख़्वानी की
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तू ही बेहतर है आइना हम से
हम तो इतने भी रू-शनास नहीं
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