साहिर देहल्वी
ग़ज़ल 32
अशआर 23
मिल-मिला के दोनों ने दिल को कर दिया बरबाद
हुस्न ने किया बे-ख़ुद इश्क़ ने किया आज़ाद
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था अनल-हक़ लब-ए-मंसूर पे क्या आप से आप
था जो पर्दे में छुपा बोल उठा आप से आप
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शेर क्या है आह है या वाह है
जिस से हर दिल की उभर आती है चोट
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नक़्श-ए-क़दम हैं राह में फ़रहाद-ओ-क़ैस के
ऐ इश्क़ खींच कर मुझे लाया इधर कहाँ
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पाबंदी-ए-अहकाम-ए-शरीअत है वहाँ फ़र्ज़
रिंदों को रुख़-ए-साक़ी-ओ-साग़र हुए मख़्सूस
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