बेदिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल 18
अशआर 2
तुम जफ़ा पर भी तो नहीं क़ाएम
हम वफ़ा उम्र भर करें क्यूँ-कर
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अक़्ल कहती है न जा कूचा-ए-क़ातिल की तरफ़
सरफ़रोशी की हवस कहती है चल क्या होगा
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