अफ़ज़ाल नवेद
ग़ज़ल 20
अशआर 19
अय्याम के ग़ुबार से निकला तो देर तक
मैं रास्तों को धूल बना देखता रहा
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रहती है शब-ओ-रोज़ में बारिश सी तिरी याद
ख़्वाबों में उतर जाती हैं घनघोर सी आँखें
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सहर की गूँज से आवाज़ा-ए-जमाल हुआ
सो जागता रहा अतराफ़ को जगाए हुए
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दरवाज़े थे कुछ और भी दरवाज़े के पीछे
बरसों पे गई बात महीनों से निकल कर
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मैं ने बचपन की ख़ुशबू-ए-नाज़ुक
एक तितली के संग उड़ाई थी
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