रौग़नी पुतले
स्टोरीलाइन
राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे पर बात करती कहानी, जो शॉपिंग आर्केड में रखे रंगीन पुतलों के गिर्द घूमती है। जिनके आस-पास सारा दिन तरह-तरह के फै़शन परस्त लोग और नौजवान लड़के-लड़कियाँ घूमते रहते हैं। मगर रात होते ही वे पुतले आपस में गुफ़्तगू करते हुए मौजूदा हालात पर अपनी राय ज़ाहिर करते हैं। सुबह में आर्केड का मालिक आता है और वह कारीगरों को पूरे शॉपिंग सेंटर और तमाम पुतलों को पाकिस्तानी रंग में रंगने का हुक्म सुनाता है।
शहर का इलिट शॉपिंग सेंटर... जिसकी दीवारें, शेल्फ़, अलमारियां बिलौर की बनी हुई हैं। जिसका बना सजा फ़ेकेड जलते-बुझते रंगदार साइज़ से मुज़य्यन है। जिसके काउंटर्ज़ मुख़्तलिफ़ रंगों के गुलू क्लर्ज़ पेंटस की धारियों से सजे हुए हैं और शेल्फ़ दीदा ज़ेब सामान से लदे हैं जिसके काउंटरों पर स्मार्ट मुतबस्सिम लड़कियां और लड़के यूं ईस्तादा हैं जैसे वो भी प्लास्टिक के पुतले हों। जो उनके इर्दगिर्द यहां वहां सारे हाल में जगह जगह रंगा-रंग लिबास पहने खड़े हैं... हाल फ़ैशन आर्केड से कौन वाक़िफ़ नहीं।
चाहे उन्हें कुछ न ख़रीदना हो, लोग किसी न किसी बहाने फ़ैशन आर्केड का फेरा ज़रूर लगाते हैं। वहां घूमते फिरते नज़र आना एक हैसियत पैदा कर देता है। कुछ पाश चीज़ों और नए डिज़ाइनों को देखने आते हैं ताकि महफ़िलों में लेटस्ट फ़ैशन की बात कर के उप टू डेट होने का रोब जमा सकें। नौजवान आर्केड में घूमने फिरने वालियों को निगाहों से टटोलने आते हैं। गुंडे सेल गर्लज़ से अटास्टा लगाने की कोशिश करते हैं। लड़कियां अपनी नुमाइश के लिए आती हैं। बूढ़े ख़ाली आँखें सेंकते हैं। घाग बेगमात ग्रीन यूथ की टोह में आती हैं। वो सिर्फ़ फ़ैशन आर्केड ही नहीं, रूमान आर्केड भी है, क्यों न हो। आज मुहब्बत भी तो फ़ैशन ही है।
कौन सी चीज़ है जो फ़ैशन आर्केड मुहय्या नहीं करता। ज़रबफ्त से गाढे तक। मोस्ट माडर्न गैजट्स से सुई सलाई तक सी थ्रो से रंगीन मालाओं तक। सब कुछ वहां मौजूद है। लोग घूम घाम कर थक जाते हैं तो आर्केड के रेस्तोराँ में काफ़ी का प्याला लेकर बैठ जाते हैं।
फ़ैशन आर्केड की अहमियत का ये आलम है कि फ़ोरेन डिग्नीटरीज़ ने ख़रीद-ओ-फ़रोख़त करनी हो तो उन्हें ख़ास इंतिज़ामात के तहत आर्केड में लाया जाता है।
आर्केड हाल में जगह जगह रोग़नी पुतले तरह तरह का लिबास पहने खड़े हैं। चेहरों पर जवानी की सुर्ख़ी झिलमिला रही है। आँखों में दावत भरी चमक है। होंटों पर रज़ामंदी भरा तबस्सुम खुदा है। जिस्म के पेच-ओ-ख़म हर लहज़ा यूं उभरते सिमटते महसूस होते हैं जैसे सुपुर्दगी के लिए बे-ताब हों।
अगर डमी पुतले प्लास्टिक के जुमूद में मुक़य्यद हैं मगर सन्नाअ ने उन्हें ऐसी कारीगरी से बनाया है कि उनके बंद बंद में हरकत की एल्यूज़न लहरें ले रही हैं। यूं लगता है जैसे वो रवाँ-दवाँ हों।
सी थ्रो लिबास वाली पुतली को देखो तो ऐसे लगता है जैसे वो अभी अपनी ब्रहना टांग उठा कर कहेगी, होए मुझे सँभालो। मैं गिरी जा रही हूँ। और जैकेट वाला अपनी ऐनक उतार कर मूंछों को लटकाते हुए चल पड़ेगा, होल्ड आन डार्लिंग मेरी गोद में गिरना।
आर्केड में बहुत सी पुतलियां पोज़ बनाए खड़ी हैं। मिनी स्कर्ट वाली, साड़ी वाली, बेदिंग कॉस्ट्यूम वाली, मैक्सी वाली, सी थ्रो लिबास वाली, लटकते बालों वाली, पतलून वाली नंगे-पाँव वाली, हपन, टोकरा बालों वाली, उंगली से लगे बच्चे वाली।
उनके साथ साथ पुतले खड़े हैं। शिकारी जैकेट वाला, दानिश्वर, मोटर साईकल वाला, ब्लैक सूट, अचकन, हिप्पी, कुरते-पाजामे वाला, स्टूडैंट, डैनडी, मुसव्विर।
आर्केड बाल के ऊपर दीवार के साथ साथ एक गैलरी चल गई है। जहां नज़रों से ओझल दुकान का काठ कबाड़ पड़ा है। पुरानी मेज़ें कुर्सियाँ, शेल्फ़ और पुतले जिनका रंग-ओ-रोग़न उखड़ चुका है।
रात का वक़्त है। आर्केड बंद हो चुका है। हाल में सात आठ बत्तियां रोशन हैं, शीशे की दीवारों की वजह से बाल जगमग कर रहा है।
घड़ी ने दो बजाये। सारे हाल में हरकत की एक लहर दौड़ गई। पुतलियों ने आँखें खोल दीं। पुतलियों की लंबी लंबी पलकें यूं चलने लगीं जैसे पंखियां चल रही हों।
सी थ्रो ने अंगड़ाई ली।
मिनी स्कर्ट वाली ने अपनी टांग उठाई।
जैकेट वाले दानिश्वर ने अपना क़लम जेब में टांगा। ऐनक साफ़ की और सी थ्रो की तरफ़ भूकी नज़रों से देखने लगा।
मोटर साईकल वाले ने पीछे बैठी लटकते बालों वाली पर ग्लीड आई चमकाई। लटकते हुए बालों वाली से छींटे उड़ने लगे।
माई गॉड। सी थ्रो चिल्लाई। ये देखो, उसने अपनी टांग लहराई। मेरी टांग पर नीली रगें उभर आई हैं खड़े खड़े।
क्यों न हो, ब्लू ब्लड है। ब्लैक सूट मुस्कुराया।
दूर से एक आवाज़ आई। साग़र को मरे हाथ से लेना कि चली मैं। सब लोग बुक्स के पास खड़ी पतलून वाली की तरफ़ देखने लगे।
तेरे हाथ तो ख़ाली हैं। कहाँ है साग़र? कुरते पाजामे वाले ने पूछा।
अंधे, वो तो ख़ुद साग़र है, दिखता नहीं तुझे। जीन वाला हिंसा।
मैं तो बोर हो गई हूँ। मिनी स्कर्ट वाली ने आँखें घुमा कर कहा।
क्यों मज़ाक़ करती हो? मोटर साईकल वाले ने ग्लीड आई चमकाई।
तुम तो सरापा हरकत हो। तुम्हारी तो बोटी बोटी थिरकती है। तुम कैसे बोर हो सकती हो?
क्यों बनाते हो उसे, उसके जिस्म पर बोटी ही नहीं, थिरकेगी कहाँ से। दूर कोने में खड़े अचकन वाले ने कहा।
हाँ! पहलवान नुमा करने वाले ने सर इस्बात में हिलाया। वो तो मुटियार का ज़माना था जब बोटी बोटी थिरका करती थी। अब तो काठ ही काठ रह गया है।
शट अप। जीन वाले ने आँखें दिखाईं। अपने दक़यानूसी रजअत-पसंद ख़यालात से फ़ैशन आर्केड की फ़िज़ा को मुतअफ़्फ़िन न करो।
अबे मिस्टर अचकन। स्टूडैंट चिल्लाया, ज़रा आईना देखो। यूं लगते हो जैसे सारंगी पर ग़लाफ़ चढ़ा हो।
ये मिस्टर अचकन तो ख़ालिस हिस्ट्री है हिस्ट्री। उसे तो म्यूज़ियम में होना चाहिए।
एंटिक्स म्यूज़ियम में। जैकेट वाले ने क़हक़हा लगाया।
बिल्कुल, इन रिवायती लोगों को जीने का कोई हक़ नहीं।
ये लोग ज़िंदगी को क्या जानें।
हिप्पो क्रेटस। हर तरफ़ से आवाज़ें आने लगीं।
इग्नोर हिम, हटाओ... कोई और बात करो। सी थ्रो आँखें घुमा कर बोली।
हाव कैन दे इग्नोर हिम? ये लोग हमारे रास्ते की रुकावट हैं।
नान सेंस। हमारे रास्ते में कोई रुकावट नहीं बन सकता। वी आर ऑल फ़ार प्रोग्रेस मूवमेंट। जैकेट वाला चिल्ला कर बोला।
हीर हीर। तालियों से हाल गूँजने लगा।
हाहा हाहा ऊपर गैलरी में कोई क़हक़हा मार कर हंसा। उसकी आवाज़ खरज थी। अंदाज़ वालहाना था। तालियाँ रुक गईं। हाल में ख़ामोशी छा गई। फिर सरगोशियाँ उभरीं।
कौन है ये?
कौन हंस रहा है?
पता नहीं, ऊपर से आवाज़ आ रही है।
हए मैं तो डर गई। कितनी हॉर्स आवाज़ है।
क़हक़हा रुक गया, फिर क़दमों की आवाज़ सुनाई दी... ठक ठक ठक ठक।
कोई चल रहा है ऊपर।
हए मेरी तो जान निकली जा रही है।
पता नहीं कौन है। मिनी स्कर्ट वाली बोली।
डोंट फियर डार्लिंग। आई ऐम हियर बाई योर साईड।
वो देखो... वो। टोकरा बालों वाली ने ऊपर की तरफ़ इशारा किया।
ऊपर... गैलरी के जंगले पर। साड़ी वाली डर कर बोली।
सबकी निगाहें ऊपर जंगले की तरफ़ उठ गईं।
गैलरी की रेलिंग से एक बड़ा सा भयानक चेहरा झांक रहा था।
तौबा है। उफ़... हाय... पुतलियों ने शोर मचा दिया।
कौन है तू? मोटर साईकल वाला अपना साईलेंसर निकाल कर गुर्राया।
मैं वो हूँ जो एक रोज़ मशहदी लुंगी बाँधे वहां खड़ा था, जहां आज तू खड़ा है।
इसकी आवाज़ इतनी भद्दी क्यों है? सी थ्रो ने सीना सँभाला।
कहाँ से बोल रहा है ये? पतलून वाली ने पूछा।
मैं वहां से बोल रहा हूँ जहां बहुत जल्द तुम फेंकी जाने वाली हो। लुंगी वाला कहने लगा।
पुतलियों का रंग ज़र्द पड़ गया। उनके मुँह से चीख़ें सी निकलीं। नो नो... नो नो... नेवर। माई गॉड। होए अल्लाह। वो सब सहम कर पीछे हट गईं।
डोंट माईंड हिम डार्लिंग। जीन वाला बोला। ये तो पिटा हुआ मोहरा है। पिटे हुए मुहरे से क्या डरना।
दैट्स इट दैट्स इट, दे बिलांग टू दी पास्ट।
ये अब भी माज़ी में रहते हैं और हमको माज़ी की तरफ़ घसीटना चाहते हैं। जैकेट वाला हक़ारत से बोला।
बड़े मियां सलाम। जैकेट वाले ने माथे पर हाथ मार कर तंज़िया सलाम किया। माज़ी परस्ती का दौर ख़त्म हुआ। हज़्ज़त अब जदीदियत का ज़माना है।
गैलरी में औंधा पड़ा हुआ रूमी टोपी वाला लंगड़ा सोटी पकड़ कर उठ बैठा।
अहमक़ हैं ये जदीदियत के दीवाने। इतना भी नहीं जानते कि इस दुनिया में न क़दीम है न जदीद। जो आज जदीद है वो कल क़दीम हो जाएगा।
ये ज़ाहिर के दीवाने क्या समझेंगे। मशहदी लुंगी वाले ने क़हक़हा लगाया कि दूर एक घूमता हुआ चक्कर है जो आज ऊपर है, कल नीचे चला जाएगा। जो आज नीचे है, कल ऊपर आ जाएगा।
जीन वाले ने अपनी पतलून झाड़ी। इन कबाड़ ख़ानों वालों की बातें न सुनो। ये बेचारे क्या जानें जदीदियत को।
जदीदियत के दीवाने। आज तेरी पतलून के पाइंचे खुले हैं। कल तंग हो जाऐंगे। परसों फिर खुल जाऐंगे। यही है न तेरी जदीदियत। रूमी टोपी वाले ने क़हक़हा लगाया।
ज़रा उसकी जीन की तरफ़ देखो। लुंगी वाला बोला, नीली पतलून पर सुर्ख़ टली लगी हुई है... हाहा, हाहा। वो क़हक़हा मार कर हँसने लगा।
अहमक़! ये टली नहीं। पिच है पिच। पिच फ़ैशन है। पुच्छ लगी जीन की क़ीमत आम पतलून से दुगुनी होती है। तुझे कुछ पता भी हो।
पैवंद कभी ग़ुर्बत का निशान था। पैवंद लगे कपड़ों वाले से लोग यूं घिन खाते थे जैसे कोड़ी हो। आज तुम इस पैवंद की नुमाइश पर फ़ख़्र महसूस कर रहे हो। मशहदी लुंगी वाला हँसने लगा। तुम अजीब तमाशा हो।
रूमी टोपी वाले ने क़हक़हा लगाया। दौर-ए-जदीद के तख़य्युल का फ़ुक़दान मुलाहिज़ा हो। पैवंद को फ़ैशन बना बैठे हैं। ही ही ही ही...
सारा क्रेडिट हमें जाता है। हपन ने सर उठा कर कहा।
हाएं... ये क्या कह रही है? पतलून वाली ने पूछा।
लूसी थ्रो ज़ेर-ए-लब गुनगुनाई, छलनी बी बोली।
हाँ! हिप्पी ने सीने पर हाथ मारा, सारा क्रेडिट हमें जाता है।
ताफ़्फ़ुन का क्रेडिट, ग़लाज़त का क्रेडिट और कौन सा। बेदिंग कॉस्ट्यूम वाली बोली। साड़ी वाली ने नाक चढ़ाई।
हिप्पी ने क़हक़हा लगाया। जदीदियत के ज़ह्नी ताफ़्फ़ुन को दूर करने का क्रेडिट। जदीदियत के बुत तोड़ने का क्रेडिट। झूटी क़दरों को पांव तले रौंदने के लिए हमें ग़लाज़त को अपनाना पड़ा।
स्पोर्टस गर्ल ने बैडमिंटन रैकट को घुमा कर दाँत निकाले।
डेंटल क्रीम का इश्तिहार किसे दिखा रही हो? हिप्पी हंसा। हमने दौर-ए-हाज़रा के सबसे बड़े बुत दौलत को पाश पाश कर दिया। हमने झूटे रख-रखाव का बुत रेज़ा रेज़ा कर के रख दिया। हमने माडर्न एज के वाहिद दिल बहलावे स्मॉल कम्फर्टस की नफ़ी कर दी। हमने मग़रिबी तहज़ीब का जनाज़ा निकाल दिया।
ये बेचारे क्या जानें। हपन बोली। ज़ाहरियत के मतवाले... जब कोई तहज़ीब मुतअफ़्फ़िन हो जाती है तो उसे मिस्मार करने के लिए मुजाहिद भेज दिए जाते हैं। हम वो मुजाहिद हैं।
तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुदकुशी करेगी। रूमी टोपी वाले ने क़हक़हा लगाया।
बिल्कुल दुरुस्त। लुंगी वाला चिल्लाया। ये ट्रांजीशनल दौर है। जब एक शो ख़त्म हो जाता है तो दूसरे शो के वास्ते हाल साफ़ करने के लिए जमादार आ जाते हैं। ये जमादारों का दौर है।
सिल्ली फ़ूल। सी थ्रो हंसी। ये तो रोमांस का दौर है।
रोमांस! गैलरी के काठ कबाड़ से एक मजनूँ सिफ़त दीवाना लपक कर रेलिंग पर आ खड़ा हुआ। तुम क्या जानो, रूमान क्या होता है... तुम्हारे दौर ने तो इश्क़ का गला घूँट दिया। आशिक़ को ठंडा कर के रख दिया। महबूब से महबूबियत छीन कर उसे रंडी बना दिया। उर्यानी को रूमान नहीं कहते बीबी।
हाल्डर डैश।
नान सेंस।
रूमी टोपी वाले ने एक लंबी आह भरी। दोस्तो हमारे ज़माने में औरत का नक़ाब सरक जाता था तो गाल देखकर मर्द में तहरीक पैदा होती थी लेकिन अब नंगे पिंडों की यलग़ार ने मर्दाना हिस को कुंद कर दिया है। तुम्हारे दौर ने मर्द को नामर्द और औरत को बाँझ कर के रख दिया है।
जैकेट वाला आगे बढ़ा। उसने क़लम जेब में डाला। ऐनक उतारी। हम जिंस के मतवाले नहीं। हम जिंस की दलील में डूबे हुए नहीं हैं। दौर-ए-हाज़िर में सबसे अहम तरीन मसला इक़तिसादियात का है। तुम हालात हाज़रा से चश्मपोशी करते हो। हम तुम्हारी तरह हालात हाज़रा से आँखें नहीं चुराते। हम तरक़्क़ी-पसंद लोग हैं।
हालात हाज़रा। रूमी टोपी वाले ने क़हक़हा लगाया। तुम्हारे नज़दीक हालात हाज़रा रोटी, कपड़ा और मकान हैं। हमारे नज़दीक सबसे बड़ा मसला अना का है। सेल्फ़ का... मैं का।
रोटी कपड़े वालो हमारी तरफ़ देखो। हपन चिल्लाई, जो मिलता है, खा लेते हैं। जहां बैठ जाते हैं, वही ठिकाना बन जाता है। जो मयस्सर आता है, पहन लेते हैं। कहाँ हैं वो मसले जिन्हें तुम एहराम मिस