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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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करामत अली शहीदी

- 1840

लखनऊ स्कूल के प्रतिष्ठित क्लासिकी शायर

लखनऊ स्कूल के प्रतिष्ठित क्लासिकी शायर

करामत अली शहीदी

ग़ज़ल 21

अशआर 3

अय्याम मुसीबत के तो काटे नहीं कटते

दिन ऐश के घड़ियों में गुज़र जाते हैं कैसे

जी चाहेगा जिस को उसे चाहा करेंगे

हम इश्क़ हवस को कभी यकजा करेंगे

सीख ले हम से कोई ज़ब्त-ए-जुनूँ के अंदाज़

बरसों पाबंद रहे पर हिलाई ज़ंजीर

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