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आज तक बहका नहीं बाहर से दीवाना तिरा

लुत्फ़ुर्रहमान

आज तक बहका नहीं बाहर से दीवाना तिरा

लुत्फ़ुर्रहमान

MORE BYलुत्फ़ुर्रहमान

    आज तक बहका नहीं बाहर से दीवाना तिरा

    हौसले मेरी निगाहों के हैं पैमाना तिरा

    रात भर शबनम की आँखों से सहर की माँग में

    मैं जिसे लिखता रहा वो भी था अफ़्साना तिरा

    ये तिरे दरिया सलामत ये तिरे बादल ब-ख़ैर

    लुट रहे हैं ख़ुम पे ख़ुम साबित है मय-ख़ाना तिरा

    आँसुओं की आब-ए-जू हाइल है वर्ना लाऊँ मैं

    मेरी नज़रों का शरर आँखों का ख़स-ख़ाना तिरा

    दिल में धड़कन की तरह साँसों में ख़ुशबू की तरह

    अब ख़यालों में भी कब आता है वो आना तिरा

    अव्वल अव्वल तो तमाज़त दोपहर के दश्त की

    आख़िर आख़िर अपनी नज़रों को झुका जाना तिरा

    रेज़ा रेज़ा कर गई पत्थर को भी शबनम की चोट

    हाए किस दिल से मगर वो मुझ को समझाना तिरा

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    फ़हद हुसैन

    फ़हद हुसैन,

    फ़हद हुसैन

    आज तक बहका नहीं बाहर से दीवाना तिरा फ़हद हुसैन

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